भारत में सबसे महान संत कौन है तथा पूर्ण संत की पहचान क्या है, Identity Of The Perfect Saint

Identity Of The Perfect Saint- दोस्तों भारत में लाखों साधू-संत पाए जाते हैं, जो अपने ज्ञान के अनुसार लोगों को भक्ति बताते हैं। कुछ साधू संत मंदिर-मस्जिद में भगवान की पूजा करने के लिए कहते हैं, कुछ तीर्थ और व्रत करने का सुझाव देते हैं, जो श्रीमद्भागवत गीता के बिल्कुल विरुद्ध है शास्त्र विरुद्ध भक्ति बताने वाले पूर्ण संत नहीं हो सकते। लेकिन कुछ लोग अक्सर पूछते हैं कि भारत में सबसे बड़ा संत कौन है। 

Identity Of The Perfect Saint

दोस्तों आज हम आपको पूर्ण संत की पहचान (Puran Sant Ki Pahchan) और वर्तमान में भारत के सबसे बड़े संत कौन हैं, इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं भारत में सबसे महान संत कौन है तथा पूर्ण संत की पहचान क्या है।

भारत में सबसे महान संत कौन है- Identity Of The Perfect Saint

भारत के महान साधु संतों में सर्वप्रथम कबीर साहब सबसे बड़े संत हुए थे। उन्होंने समाज में व्याप्त पाखंड पूजा और बुराइयों का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने ब्रह्मा विष्णु और महेश के जन्म मरण के रहस्यों को उजागर किया तथा पूर्ण परमात्मा तथा मानव जन्म के मुख्य उद्देश्यों के बारे में लोगों को समझाया लेकिन उस समय के Saint महंतों ने कबीर जी के सतज्ञान का बहुत विरोध किया था।  

वर्तमान में लाखों साधू-संत और महंत हैं जिन्हें पूर्ण परमात्मा के नाम से भी परिचित नहीं हैं क्योंकि वेदों में पूर्ण परमात्मा के नाम का उल्लेख मिलता है। लेकिन वर्तमान के साधू-संत ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता के नाम से भी ठीक से परिचित नहीं हैं।

वेद शास्त्रों को न समझने के कारण आज के संत-हमंत पूर्ण परमात्मा को निराकार मानते हैं जबकि वेद शास्त्रों में लिखा है परमात्मा साकार है तथा देखने में राजा के समान है दर्शनीय है। जिन संतों को पूर्ण परमेश्वर के अस्तित्व का ही ज्ञान नहीं है उसे पूर्ण संत नहीं कहा जा सकता है और ही महान। 

पूर्ण सतगुरु वह होता है जो वेद शास्त्रों के अनुसार दुनिया को आध्यात्मिक ज्ञान करने के साथ-साथ पाखंड पूजा और हर प्रकार की बुराइयों से लोगों को मुफ्त करे।

वेद शास्त्रों के अनुसार दुनिया में सच्चा संत कौन है

विश्व में पूर्ण गुरु कौन है इसके मापने का पैमाना वेद शास्त्र हैं, वेद शास्त्रों के द्वारा ही सच्चे गुरु की पहचान हो सकती है। मानव जीवन प्राप्त करने के बाद जिस व्यक्ति ने सच्चे Sant की तलाश नहीं की तथा पूर्ण गुरु द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर अमल नहीं किया तो उसका मानव जीवन व्यर्थ है। 

पवित्र शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि जब भी धर्म की हानि होती है तब भगवान स्वयं संत के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और तत्त्वज्ञान द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। वह शास्त्रों के अनुसार भक्ति मार्ग की व्याख्या करते हैं। अज्ञानवश नकली धर्मगुरु उस Mahan Sant के आध्यात्मिक ज्ञान का विरोध करने लगते हैं।

गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि वह संत उल्टे लटके हुए संसार रुपी के वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात् जड़ से लेकर पत्ते तक का विस्तृत ज्ञान देने वाला होगा।

यजुर्वेद अध्याय 19, मंत्र 25 और 26 में लिखा है कि वह संत वेदों के अधूरे वाक्यों यानी कोड वर्ड्स और एक-चौथाई श्लोकों को पूरा करने के बाद विस्तार से बताएगा। वह अपने साधक को तीन बार की पूजा बताने वाला होगा। सुबह पूर्ण परमात्मा की पूजा के साथ-साथ दोपहर में सभी देवी-देवताओं का सत्कार और शाम की आरती अलग से बताने वाला पूर्ण संत है।

यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 30 में सच्चे गुरु की पहचान बताते हुए कहा गया है कि सच्चा संत उसी को अपना शिष्य बनाता है जो सदाचारी है और नशा न करने का आश्वासन देता है।

सच्चे गुरु के लक्षण 

सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद षट् शास्त्र, वह कहै आठरा बोध।

संत गरीबदास जी महाराज अपनी अनमोल वाणी में सच्चे गुरु के लक्षण बता रहे हैं कि वह सच्चा संत चार वेदों के साथ-साथ छः शास्त्र और अठारह पुराणों का पूर्ण ज्ञाता होगा।

साधु ऐसा होना चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देए उड़ाय।

कबीर जी अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बताते हुए कह रहे हैं कि सच्चा संत ऐसा होता है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप गेहूं से कूड़ा-कचरा उड़ा देता है और साफ गेहूं रख लेता है। 

उसी तरह एक सच्चा संत अपने भक्त के अन्दर से सभी प्रकार की पाखंड पूजा और बुराइयों को बहार निकालकर फैंक देता है तथा अपने भक्त को इंसान से देवता बना देता है। सच्चा गुरु ही बता सकता है कि कौन से भगवान की भक्ति करनी चाहिए

आज विश्व में सच्चे गुरुओं की कमी है। आज हमारे धर्मगुरुओं के दोहरे मापदंड सामने आ रहे हैं। उनके दिमाग में कुछ होता है और उनकी वाणी में कुछ और होता है। भक्त भी इस पाखंडी गुरुओं को पसंद करते हैं, इसलिए जगह-जगह धार्मिक सत्संगों में हजारों लोगों की संख्या देखने को मिल जाती है। 

जहां गुरु जी अपने सेवकों और सेवकों के साथ आते हैं और केवल एक-दो दिनों के सत्संग के लिए लाखों रुपये जमा करके चले जाते हैं। सच्चे संत की पहचान बताते हुए महान सतगुरु कबीर जी ने कहा है..

भेष देख मत भूलये, बुझि लीजिये कछु ज्ञान।
बिना कसौटी होत नहिं, कंचन की पहिचान।।

केवल लाल-पीले कपड़े पहनने वाले महंतो को साधु-संत समझने की भूल न करो, उनसे कुछ आध्यात्मिक ज्ञान की बातें पूछें जैसे, ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता कौन हैं, हमें जन्म देने तथा मारने में किस भगवान का स्वार्थ है, क्योंकि बिना कसौटी के सोने की पहचान नहीं हो सकती वैसे ही बिना ज्ञान के संत की पहचान नहीं हो सकती।

कबीर- कवि तो कोटिन हैं, सिर के मूड़े कोट।
मन के मूड़े देखि करि, ता संग लिजै ओट।।

इस दुनिया में करोड़ों कवि और करोड़ों गुरु हैं जो सिर मुंडवाकर घूमते पाए जाते हैं, लेकिन कबीर जी का कहना कि हे भोले श्रद्धालुओं तुम ऐसे बुद्धिमान सतगुरु की शरण में जाओ जिन्होंने अपने मन को मुंडवा लिया हो।

कुछ टीवी चैनल भी ऐसे पाखंडी महात्माओं के प्रवचनों से भरे पड़े हैं। ये महंत इन टीवी चैनलों पर लाखों रुपये खर्च कर अपना प्रचार करते हैं। दुनिया में धूर्त और पाखंडी गुरुओं का बहुत बड़ा जाल है। इनके चंगुल में हजारों ही नहीं बल्कि लाखों करोड़ों लोग फंसे हुए हैं।

सदियों से भेड़ चाल चलती आ रही है। अंधे लोग अंधे गुरुओं का अनुसरण करके सतभक्ति मार्ग से भटक रहे हैं, लेकिन वह श्रद्धालु उन पाखंडी गुरुओं के प्रति अंधविश्वास और लगाव नहीं छोड़ पा रहे हैं। 

ऐसा लगता है जैसे देश में बेरोजगारी फैली हुई है, अक्सर सोने के मुकुट और भगवानों के हीरे-जवाहरातों से सजे सिंहासनों की खबरें अखबारों में पढ़ने को मिल जाती हैं। भगवान और पाखंडी गुरुओं बढ़ते जा रहे हैं और इन भगवानों और पाखंडी गुरुओं का धन बढ़ रहा है। 

और साथ ही जाति-धर्म का रोग बढ़ भी बढ़ रहा जो कोई सामान्य रोग नहीं हैं। जाति-धर्म के विषय में विश्व के सबसे बड़े और महान सतगुरु रामपाल जी तथा कबीर जी की वाणी इस प्रकार है।

जाति नहीं जगदीश की तो हरिजन की कहां से होए।
इस जाति-पाति के चक्कर में डूब मत मरो कोए।।

जीव हमारी जाति है और मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।

तत्वदर्शी संत रामपाल जी का कहना कि चींटी से लेकर हांथी तक सभी एक पूर्ण परमात्मा के बच्चे हैं, जब पू‌र्ण परमात्मा की जाति नहीं है तो आप क्यों जाति-धर्म के चक्कर में डूब कर मर रहे हो। तथा हम सभी को जाति-धर्म की दीवार से ऊपर उठकर केवल एक उसी पूर्ण परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए।

जाति-धर्म की बीमारी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। विचारणीय विषय यह है कि गुरु किसे कहते हैं और क्या गुरु का होना आवश्यक है? गुरु- अच्छे गुणों पर गर्व करने वाला कोई भी व्यक्ति गुरु कहलाता है। शिक्षा देने वाले का सम्मान होता है, उसे गुरु भी कहा जाता है।

माता-पिता, बच्चे के भौतिक शरीर के निर्माता और बच्चे के प्राथमिक शिक्षक होने के नाते पहले गुरु माने जाते हैं। पहले बच्चे को पांच साल मां से, तीन साल पिता से और फिर शिक्षक से अक्षर ज्ञान प्राप्त होता है।

गुरु के बिना भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। बालक का नैसर्गिक ज्ञान बहुत कम होता है, उसे केवल आकस्मिक ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसलिए कहा जाता है कि बिना पूर्ण गुरु मोक्ष के नहीं हो सकता है। कोई कितनी भी पुस्तकों का स्वाध्याय करे, लेकिन गुरु के बिना आध्यात्मिक ज्ञान का तथा मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।

गुरु के ज्ञान का स्वाध्याय करने से विशेष लाभ मिलता है। गुरु उसे तत्वज्ञान सिखाता सक्षम बनाता है। गुरु अपने शिष्यों के बौद्धिक और आध्यात्मिक ज्ञान को विकसित करने के साथ-साथ अपने शिष्यों का कल्याण और प्रगति चाहता है, उसे शास्त्र अनुसार सच्चा ज्ञान देता है।

गुरु पूर्ण परमात्मा का मार्गदर्शक होता है वह हमें असत्य से सत्य की ओर ले जाता है तथा हमें अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। केवल पूर्ण गुरु के ज्ञान के द्वारा आत्मा-परमात्मा को देख सकती है। आज बच्चे अपने माता-पिता से शारीरिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। स्कूलों में भी विज्ञान की पढ़ाई पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।

इसी का नतीजा है कि विज्ञान में नए-नए अविष्कार हो रहे हैं। यह ज्ञान-विज्ञान केवल भौतिक सुख का प्रदाता है लेकिन विज्ञान के पास इसका उत्तर नहीं है कि आत्मा की भूख क्या है और आत्मा का सुख कैसे प्राप्त किया जा सकता है। इसका उत्तर केवल आध्यात्मिक शिक्षा है जो केवल एक आध्यात्मिक सतगुरु ही दे सकता है।

आध्यात्मिक गुरु जो पूर्ण विद्वान, परोपकारी होने के साथ-साथ सत्यवादी और गुणी हो तथा उसे सभी मनुष्यों के कल्याण के लिए उपदेश देना चाहिए। विद्वान गुरु को चाहिए कि वह सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करे और अज्ञानी को दुख के भवसागर से ऊपर उठाने के लिए नाव बन जाए।

मानव जीवन में पूर्ण गुरु का महत्व

पूर्ण गुरु हमारे आध्यात्मिक जीवन का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और सही रास्ते पर हमारा मार्गदर्शन कराते हैं। हमारे जीवन में सतज्ञान का प्रकाश लाने वाले हमारे आध्यात्मिक गुरु के पास हमारे जीवन की असंख्य समस्याओं का समाधान है। 

हिन्दू धर्म में ईश्वर को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। लेकिन पूर्ण गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊंचा माना जाता है। कहा जाता है कि अगर भगवान किसी व्यक्ति रुठ जाएं तो पूर्ण गुरु हमें भगवान के श्राप से बचा सकते हैं। 

लेकिन अगर हमारे पूर्ण गुरु हमसे रुष्ठ हो जाएं तो भगवान भी हमें उससे नहीं बचा सकते। इसी कारण कबीर जी ने एक दोहे में कहा है-

कबीरा वे नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।

दोस्तों आज के आर्टिकल में आपने जाना भारत में सबसे महान संत कौन है तथा पूर्ण संत की पहचान क्या है। हमें उम्मीद है आपको यह आर्टिकल जरुर पसंद आया होगा, हमें अपनी राय अवश्य दें और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।

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