17 फरवरी को ही क्यों मनाया जाता है संत रामपाल जी महाराज का Bodh Diwas. जाने बोध दिवस से जुड़ी पूरी जानकारी

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे Sant Rampal Ji Maharaj Bodh Diwas क्यों मनाया जाता है तथा इसके पीछे क्या कहनी छिपी है। तो आइए जानते हैं संत रामपाल जी महाराज के बोध दिवस से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।

संत रामपाल जी महाराज का Bodh Diwas

संत रामपाल जी महाराज ने 17 फरवरी 1988 को 37 वर्ष की आयु में फाल्गुन मास की अमावस्या को स्वामी रामदेवानंद जी से नाम दीक्षा प्राप्त की। सतगुरु रामपाल जी महाराज ने नाम उपदेश प्राप्त कर अपने सतगुरु स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए गए भक्ति मार्ग में तन-मन से स्वयं को समर्पित कर दिया तथा साधना की और पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार किया। 

Rampal Ji Maharaj Bodh Diwas क्यों मनाया जाता है

समाज में व्यापक कुरीतियों और बढ़ रहे सामाजिक अपराधों से छुटकारा पाने के लिए हमें तत्वज्ञान की आवश्यकता है और ऐसा ही ज्ञान देने वाले जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज का 17 फरवरी को बोध दिवस है। 

17 फरवरी को उस महान सन्त का बोध दिवस है जिनके द्वारा बताई गई सतभक्ति से हमारे पापों का नाश होता है। जिससे हमारे दुःख दूर होते हैं। और हमें परमात्मा से लाभ मिलना शुरू हो जाते हैं। 

सभी भविष्यवक्ताओं के अनुसार भारत का एक महापुरुष विश्व को मानवता के सूत्र में बांध देगा व हिंसा, दुराचार, कपट संसार से सदा के लिए मिटा देगा। वह महापुरुष कोई और नहीं बल्कि जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही हैं जिनका 17 फरवरी 2022 को आध्यात्मिक जन्म दिवस है। 

उपदेश दिवस को संत मत में उपदेशक का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है। इसलिए हर साल 17 फरवरी का पर्व संत रामपाल जी महाराज के बोध दिवस (Bodh Diwas) के रूप में ही मनाया जाता है। इस दिन संत रामपाल जी महाराज के सभी श्रद्धालु सत्संग सुनते हैं और पूर्ण परमात्मा की साधना करते हैं। 

दोस्तों वहीं आज के मॉडर्न जमाने में जब भी किसी व्यक्ति का जन्मदिन मनाया जाता है तो केक काटने के साथ-साथ पार्टी का आयोजन भी किया जाता है। हर कोई उसे जन्मदिन की मुबारकबाद देता है लेकिन हम बिना ज्ञान के यह भूल जाते हैं कि यह मृत्यु लोक है। दोस्तों यह मनुष्य जीवन बहुत ही अनमोल है इस जन्म में ही व्यक्ति भगवान का भजन करके इस मृत्युलोक से छुटकारा पा सकता है।

लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बिना ज्ञान के हमारे जीवन में और एक जानवर के जीवन में क्या अंतर है? पशु-पक्षी भी अपना पेट भरने और बच्चे पैदा करने के लिए संघर्ष करते हैं और बिना ज्ञान के मनुष्य भी उन्हीं की तरह संघर्ष करते-करते प्राण त्याग देता है। नानक देव जी ने इस विषय में कहा कि

ना जाने काल की कर डारे, किस विधि ढ़ल जा पासा वे।
जिन्हाते सिर ते मौत खुड़कदी, उन्हानूं केहड़ा हांसा वे।।

इस मृत्युलोक में हर कोई नाशवान है। मुझे भी नहीं पता कि कब मेरा नम्बर आ जाए। जिसके सिर पर हर पल मृत्यु तांडव कर रही हो, वह व्यक्ति नाचना-गाना और खुशी कैसे मना सकता है। इस मृत्युलोक में कोई अज्ञानी या नशे में धुत व्यक्ति ही अज्ञानता वश जन्मदिन या खुशी मना सकता है। 

उदाहरण के लिए एक आदमी की पत्नी को शादी के दस साल बाद एक बेटे ने जन्म लिया। उसने बच्चा पैदा होने की खुशी में लड्डू बांटे और साथ ही बैंड-बाजे बजाए। अगले वर्ष उनके जन्मदिन पर उनका मृत्यु हो गई। कहां तो उसके जन्मदिन की तैयारी हो रही थी लेकिन कहां रोना पीटना शुरू हो गया। घर नर्क समान बन गया है। क्या अब वह व्यक्ति खुशियां मना सकता है। संत नानकदेव जी आगे कहते हैं कि

मौत बिसारी मूर्खा और अचरज किया कौन।
तन मिट्टी में मिल जाएगा, ज्यों आटे में लौन।।

उदाहरण: एक दिन एक सेठ एक पूर्ण संत के आश्रम में गया। संत की कृपा से उसे अच्छा लाभ हुआ। वह सेठ एक संत के आश्रम में बहुत सारे सेब-संतरे और केले लेकर गया। संत ने वह फल प्रसाद वाले एक टोकरे में रख दिए। दो दिन बाद जब सेठ गया तो टोकरा फलों से भरा हुआ रखा था। बस कुछ ही प्रसाद संत द्वारा भक्तों को वितरित किए गया।

कुछ भक्तों ने फल का प्रसाद लाकर टोकरे में रख दिया। सेठ ने दो दिन बाद आकर देखा और संत से कहा कि महाराज! आप यह फल क्यों नहीं खाते? संत ने कहा कि मैं मृत्यु को देख रहा हूं। इसलिए यह फल मुझ से नहीं खाए जाते हैं। सेठ ने पूछा महाराज! आप दुनिया कब छोड़ रहे हैं? संत ने कहा, आज से चालीस वर्ष के बाद मेरी मृत्यु होगी। सेठ ने कहा, हे प्रभु! सबको ऐसे ही मरना है, फिर डरना क्यों?

ऐसे में आम आदमी भी नहीं डरता। ऐसा कह कर वह सेठ चला गया। उस नगर का राजा भी उस संत का भक्त था। संत ने राजा से कहा कि तुम्हारे शहर में एक किरोड़ीमल सेठ है और उसकी चंदन की दुकान है। उसे मेरे कहने से मौत की सजा दें और एक महीने के बाद चांदनी चौदस को उसकी फांसी का दिन रखें।

जेल में सेठ की कोठरी में फलों की टोकरी और दूध की बोतल भरकर दें तथा खाने में खीर, हलवा, पूरी या सब्जी दें. राजा ने संत की आज्ञा का पालन किया। सेठ जी को बीस दिन जेल में बंद कर दिया। इससे सेठ काफी कमजोर हो गया। एक दिन संत राज की जेल में घूमने गए तथा हर कैदी से मिले।

सेठ जी को देखकर संत ने पूछा, कहाँ से हो? तुम्हारा नाम क्या हे? सेठ ने कहा, हे प्रभु! तुमने मुझे पहचाना नहीं, मैं चंदन की दुकान का मालिक किरोड़ीमल हूं। संत ने कहा, हे किरोड़ीमल! आप कमजोर कैसे हो गए? कुछ खाया पिया नहीं। अरे! फलों की टोकरी भी भरी हुई है, दूध की बोतल भरी हुई है। हलवा और खीर भी प्लेट में रखी है. सेठ ने कहा, हे प्रभु! मुझे चांदनी चौदस मौत की सजा सुनाई गई है।

लेकिन मैं कसम खाता हूँ कि मैं निर्दोष हूँ। मुझे बचा लो महाराज। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। संत ने कहा, भाई, सबको मरना है। फिर मौत से क्या डरना? सेठ जी ने सलाखों से हाथ हटाकर संत के पैर पकड़ लिए। कहा, बचाओ महाराज! कुछ भी नहीं खाया पिया जाता, बस चांदनी चौदस दिखाई देती है। संत ने कहा, सेठ किरोड़ी मल! जैसे आज तुम चांदनी चौदस के लिए मौत देख रहे हो,

इसी तरह मुझको अपनी मृत्यु चालीस वर्ष के बाद भी दिखाई देती है। आप आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी प्राणी मौज-मस्ती मारते हैं और अचानक मृत्यु हो जाती है। मैं कुछ नहीं कर सकता इस तरह मैं अपनी मृत्यु के दिन को देखता हूं जो चालीस साल बाद आने वाला है। इस कारण मुझे कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं होती है।

मौज-मस्ती भी कभी दिमाग में नहीं आती। हमेशा भगवान की याद बनी रहती है। लेकिन सेठ आपके ज्ञान की आंखों पर अज्ञान की पट्टी बंधी है, जो सत्संग सुनने से खुलती है, पूर्ण संत का सत्संग ही जीने का सही मार्ग देता है। जिससे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह सब बातें समझाकर संत ने सेठ को राजा की जेल से बरी कर दिया। फिर सेठ करोड़ीमल ने उस संत से दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाया। विश्व के महान संत सतगुरु कबीर कहते हैं:-

कबीर, जा दिन सतगुरु भेंटिया, ता दिन लेखे जान।
बाकी समय सब गंवा दिया, बिना सतगुरु के ज्ञान।।

यदि मनुष्य को समय रहते सतगुरु मिल जाए तो वह अपने ज्ञान से पशु के समान जीवन जी रहे मनुष्य को देवता बन हैं। जिस दिन वह शुभ मुहूर्त आया, जिस दिन मनुष्य को सतगुरु की प्राप्ति हुई, उसे नामदीक्षा मिली - वही उसका वास्तविक जन्म दिन माना जाता है तथा संतमत में दिन को बोध दिवस के रूप में जाना जाता है। क्योंकि उस दिन ही उस आदमी को अपने जीवन के मूल कर्तव्य के बारे में पता चल है। 

इस दिन को ज्ञानोदय का दिन भी कहा जाता है क्योंकि आत्मा को वास्तविक बोध उसी दिन हुआ जब उसे पूर्ण संत से दीक्षा मिली थी। सतगुरु कबीर जी अपनी बाणी में कहते हैं:-

बलिहारी गुरू आपणा, घड़ी घड़ी सौ सौ बार।
मनुष्य से देवता किया, करत ना लागई वार।।

उसी श्रेणी में अनंत ब्रह्मांड के स्वामी कबीर परमेश्वर जी ने भी गुरु का महत्व बताने के लिए रामानंद जी महाराज को गुरु बनाया। और आज उनके अवतार सतगुरु रामपाल जी महाराज ने भी गुरु बनाया। सतगुरु रामपाल जी महाराज का जन्म 8 सितंबर 1951 को हरियाणा प्रांत के सोनीपत जिले के धनाना गांव में एक किसान परिवार में हुआ है।

पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 18 साल तक हरियाणा प्रांत के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर काम किया. 1988 में उन्होंने स्वामी रामदेवानंद जी से ज्ञान उपदेश प्राप्त किया और अपना पूरा तन और मन परमात्मा को समर्पित कर दिया तथा स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए गए सत भक्ति मार्ग पर चले, साधना की और पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार किया।

संत रामपाल जी महाराज का उद्देश्य: 17 फरवरी बोध दिवस

सतगुरु रामपाल जी के उद्देश्य के अनुसार परम सत्य को जानने के बाद मनुष्य की आत्मा जीवन से मुक्ति की हकदार हो जाती है और मनुष्य इस संसार सागर से पूरी तरह मुक्त होने के बाद फिर से मृत्यु चक्र में नहीं फंसता। सतगुरु से सतज्ञान लेकर आत्मबोध ही एकमात्र तरीका है जिसके माध्यम से भक्त अपना जीवन कुशलता से जी सकते हैं।

17 फरवरी ऐसे ही महान सतगुरु रामपाल जी महाराज का बोध दिवस है, जिन्होंने दहेज मुक्त के के साथ-साथ नशा मुक्त और भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण करते हुए पूरे विश्व में सतज्ञान की सुगंध फैलाने की पहल की है। उन्होंने मानव जीवन का लक्ष्य सतगुरु की छत्रछाया में समग्रता में रहकर और परमात्मा का ध्यान करते हुए ईश्वर की स्तुति करके सर्वोच्च संभावना को प्राप्त करके पापों का त्याग करना बताया है।

सतगुरु रामपाल जी महाराज को वर्ष 2001 में अक्टूबर माह के पहले गुरुवार को सभी धर्मग्रंथों का गहराई से अध्ययन करने की अचानक से प्रेरणा हुई उन्होंने पवित्र श्रीमद्भगवद गीता तथा सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और उन्होंने गहरी नज़र गीता में एक पुस्तक लिखी तथा वेदशास्त्रों के आधार पर पहला सत्संग मार्च 2002 में राजस्थान प्रांत के जोधपुर शहर में शुरू किया गया और बताया कि मनुष्य को कौन से भगवान की भक्ति करनी चाहिए।

इस परोपकारी कार्य के कारण सतगुरु रामपाल जी को कई बार काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। 2006 में एक झूठे मुकदमे में उन्हें 21 महीने जेल में रहना पड़ा और उनका करोथा आश्रम भी जब्त कर लिया गया। लेकिन बाद में जब सच्चाई सामने आई तो उन्हें कोर्ट द्वारा फिर से आश्रम वापस कर दिया गया।

नवंबर 2014 से अब तक संत जी फिर से जेल में हैं और इस बार भी झूठे मुकदमों की वजह से उनके ज्ञान और सामाजिक सुधार को रोकने के लिए उनके खिलाफ दर्ज किए गए हैं। लेकिन सतगुरु रामपाल जी महाराज का ज्ञान अद्वितीय है। उनकी अध्यक्षता में भारत पूरी दुनिया पर राज करेगा।

सारे विश्व में सतभक्ति का एक ही मार्ग चलेगा और परमात्मा का विधान होगा, कोई मनुष्य दुखी नहीं रहेगा, विश्व में पूर्ण शांति होगी। समस्त मानव समाज मानव धर्म का पालन करेगा और सतभक्ति करके सभी पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सतलोक में जायेंगे। संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान तोप के गोले के समान है, जो अन्य नकली गुरुओं के पाखंड के किलों को नष्ट कर रहा है।

संत रामपाल जी महाराज के सतज्ञान को समझें

अब सभी मनुष्य सतगुरु रामपाल जी महाराज की शरण में आएं और सतज्ञान से स्वयं को अवगत कराएं और संचित ज्ञान को विभिन्न सूचना प्रौद्योगिकी संसाधनों के माध्यम से फैलाएं। पुस्तक ज्ञान गंगा में सतगुरु रामपाल जी महाराज का अमूल्य ज्ञान और "सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल" पर वीडियो संसाधनों का सदुपयोग न केवल आपके मानव जीवन के उद्देश्य को सिद्ध करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग भी खोलेगा। यह आत्मसंतुष्टि का सर्वोत्तम उपाय है।

तत्वदर्शी संत सतगुरु रामपाल जी महाराज से दीक्षा लें
सभी से विनम्र प्रार्थना है कि तत्वदर्शी संत सतगुरु रामपाल जी महाराज के अद्भुत ज्ञान को पहचानें और नाम दीक्षा लेकर अपने परिवार कल्याण करवाएं। कलियुग में सतयुग की शुरुआत हो चुकी है। विश्व के सभी महाद्वीपों में करोड़ों पुण्यात्मा तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सान्निध्य में सतभक्ति करते हुए समस्त दोषों को त्याग कर शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए अब 
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