वर्तमान में भारत के प्रसिद्ध संत कौन हैं तथा पूर्ण संत के लक्षण कैसे होते हैं: Bharat Ke Prasidh Sant

Bharat Ke Prasidh Sant: भारत अनादिकाल से संतों की भूमि रहा है। भारतीय संत उच्चतम आदर्शों का पालन करने वाले माने हैं। वे उचित ज्ञान प्रदान करके लोगों को सतभक्ति, साधना और मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करते हैं। भारत अनादि काल से अनेक धर्मों का स्थान रहा है। 

Bharat Ke Prasidh Sant

फिर भी कुछ श्रद्धालु अक्सर इंटरनेट पर सर्च करते हैं कि वर्तमान में भारत के प्रसिद्ध संत कौन हैं तथा पूर्ण संत का स्वभाव कैसा होता है। ऐसे में आज हम आपको भारत के प्रसिद्ध संतों के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले हैं जो सच्ची भक्ति के लिए जाने जाते हैं।

समय-समय पर कई भारतीय संतों ने विभिन्न संप्रदायों के सिद्धांतों को लोकप्रिय बनाने की जिम्मेदारी ली। हिंदू धर्म को भारत में अभी भी मौजूदा धर्मों का सबसे पुराना स्वरूप माना जाता है। इसके साथ ही भारत में मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों का भी विकास हुआ है। यह बात भी सच है कि भारत में संतों या गुरुओं को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है।

भारतीय संतों ने धार्मिक दर्शन को समझाने के लिए सरल तरीके अपनाए हैं। भारत में धर्म को जीवन का एक तरीका माना जाता है। संतों ने अपने शिष्यों को अपने परिवारों की देखभाल करते हुए सच्चे भक्ति मार्ग पर चलने की शिक्षा दी है।

भारत के प्रसिद्ध संत: Bharat Ke Prasidh Sant

हिंदू संत भारत में हिंदू धर्म से जुड़े सम्मानित पुरुष हैं। वे अपने ज्ञान और शिक्षाओं के माध्यम से संतों की स्थिति तक पहुंचे हैं, जो उनके द्वारा प्रकाशित मार्ग का अनुसरण करते हैं। उनमें से कुछ संतों ने भगवान के समान दर्जा भी प्राप्त कर लिया है और उन्हें धरती पर भगवान का अवतार माना जाता है।

अधिकतर संत संसार को त्यागने के लिए जाने जाते हैं और इन्हें पूर्ण संत के साथ-साथ साधु और गुरु के नाम से भी जाना जाता है। इनमें संत कबीर जी, गुरु नानक देव जी, संत रविदास जी और संत गरीब दास जी के साथ-साथ वर्तमान में तत्वदर्शी संत रामपाल महाराज भारत के प्रसिद्ध संत हैं। जो वर्तमान में शास्त्र अनुकूल प्रमाणित सतभक्ति बताने वाले माने जाते हैं तथा वर्तमान में संत रामपाल महाराज जी इस विश्व में एकमात्र प्रसिद्ध और पूर्ण संत हैं।

आजकल संत में समाज देखता है कि उसमें श्रेष्ठता और संयम है या नहीं। Sant में दूसरों का भला करने की भावना है या नहीं। वर्तमान में लोग एक संत में यह सभी गुण खोजते हैं और यह एक प्रकार से सही भी है क्योंकि वर्तमान में पाखंडी संतो की संख्या बहुत बढ़ गई है जो लोगों को शास्त्र विरुद्ध भक्ति करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए एक सच्चे संत की परख करने के लिए सतगुरु कबीर जी ने अपनी वाणी में कहा है:-

हीरा परखे जौहरी और शब्द परखे साध ।
कबीर परखे साध को, ताका मता अगाध ॥

कबीर जी अपनी वाणी के माध्यम से एक सच्चे संत के बारे में लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे हीरे का असली मूल्य एक जौहरी ही जानता है, उसी तरह एक समझदार सज्जन ही संत शब्द का अर्थ परख सकता है। सतगुरु कबीर कहते हैं कि जो व्यक्ति सच्चे Sant की परख कर लेता है, उसका मत परमात्मा की आस्था अधिक गहन होता है।

जाति न पुछो संत की और पूछ लीजिए ज्ञान ।
और मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

इस दोहे में परमेश्वर कबीर जी लोगों को संत और असंत की परिभाषा समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी साधु-संत से उनकी जाति के बारे में न पूछो, बल्कि उनसे कुछ ज्ञान चर्चा करो। पूर्ण परमात्मा के बारे में कुछ ज्ञान की बातें पूछो, साथ ही ब्रह्मा विष्णु महेश के माता-पिता के बारे में पूछो, इसी तरह तलवार की कीमत पूछो और म्यान पड़ा रहने दो, क्योंकि तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं। इसी तरह ज्ञान महत्वपूर्ण होता है न कि संत की जाति। 

एक सच्चा संत न केवल समाज के लिए, बल्कि पूरे विश्व की मानवता के साथ-साथ सभी प्राणियों के लिए खुद को समर्पित करता है तथा सभी के विकास को गति देता है। वह दुनिया के लोगों को जाति और धर्म के चश्मे से नहीं देखा है, बल्कि अपने सभी अनुयायियों को परमेश्वर के बच्चों के रूप में देखता है।

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने हमारे वेद शास्त्रों के अनुसार भक्ति बताई है और साथ ही इस जाति-धर्म की परिभाषा भी बताई है। संत रामपाल जी महाराज आज की तिथि में पूरी पृथ्वी पर एक पूर्ण संत और एक तत्वदर्शी संत हैं जिन्हें पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान है। भारत के सच्चे संत अपनी वाणी में जाति-धर्म के विषय में कहते हैं:- 

जीव हमारी जाति है तथा मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।।

वेद और श्रीमद्भागवत गीता जैसे पवित्र शास्त्रों में प्रमाण मिलता है कि जब भी धर्म की हानि होती है और पृथ्वी पर अधर्म की वृद्धि होती है और भक्ति मार्ग का रूप वर्तमान के नकली संतों, महंतों और गुरुओं द्वारा खराब किया जाता है। तब पूर्ण परमात्मा स्वयं आते हैं या अपने परम ज्ञानी संत को धरती पर भेजते हैं और सच्चे ज्ञान से धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। 

वह संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति विधि बताता है। उनकी मान्यता है कि वर्तमान के अधिकतर धार्मिक गुरु उनके विरोध में खड़े हो जाते हैं तथा राजा और प्रजा को गुमराह करके उस संत पर अत्याचार कराने लगते हैं। आइए अब नीचे जानते हैं कि संत के लक्षण कैसे होते हैं तथा पूर्ण संत की पहचान क्या है।

पूर्ण संत के लक्षण कैसे होते हैं

वैसे तो पूर्ण संत के लक्षण बहुत स्पष्ट होते हैं, जो व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ-साथ पराई स्त्री से दूर रहता है, जो कभी झूठ नहीं बोलता है और हमेशा दूसरों का भला करना अपना परम कर्तव्य मानता है और जो शास्त्रों के अनुसार सच्ची भक्ति करवाता है। वह किसी से कटु वचन नहीं बोलता और न किसी का अहित चाहता है, उन्हें पूर्ण संत कहा जा सकता है। एक पूर्ण संत का सबसे बड़ा गुण उदासीनता और क्षमा है। एक बार काशी नगरी के एक भक्त ने कबीर से पूछा कि साधु-संत के क्या लक्षण होते हैं?

संत सोई जानिए, चले संत की चाल। 
परमारथ राता रहे, बोलै बचन रसाल। 

कबीर परमेश्वर जी कहते हैं कि पूर्ण संत उसको जानना चाहिए जिसका आचरण संत के समान पवित्र हो और जो सदा परोपकार में लगा हो और मधुर वचन बोलता हो। पूर्ण संत उन्हीं को जानो जिन्होंने मोह और निन्दा का परित्याग कर दिया है। सच्चे संत अपने सम्मान और अपमान पर ध्यान नहीं देते। उनका मानना था कि अगर कोई संत एक जगह रहने लगे तो वह मोह-माया से बच नहीं सकता। इसलिए उन्होंने आगे लिखा है:-

बहता पानी निरमला और बंदा गंदा होय। 
संत जन रमता भला-दाग न लागै कोय।।

कबीर जी जानते थे कि कलियुग में एक ऐसा समय आएगा, जब लोग सच्चे संत की बात न मानकर पाखंड और दिखावा करने वाले संतों की पूजा करने लगेंगे। इसलिए उन्होंने आगे संत के लक्षण चौपाई के माध्यम से बताए हैं:-

यह कलियुग आयो अब, साधु न मानै कोय। 
कामी, क्रोधी, मसखरा, तिनकी पूजा होय।।

आज कबीर जी की बात सच साबित हो रही हैं और संतों के वेश में कई बाबा घृणास्पद आरोपों से घिरे हुए हैं। लेकिन उन्होंने लोगों को उच्च जाति और निचली जाति या किसी भी धर्म को खारिज करते हुए भाईचारे के धर्म का पालन करने का आह्वान किया। कबीर परमेश्वर ने अपने लेखन के माध्यम से सतभक्ति आंदोलन शुरू किया था और वर्तमान में पूर्ण संत रामपाल जी महाराज इस सतभक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। आइए अब जानते हैं पूर्ण संत की पहचान क्या है।

पूर्ण संत की पहचान क्या है

वर्तमान में पूर्ण संत की पहचान करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि नकली और पाखंडी साधु और बाबाओं ने धरती के पर्यावरण को इतना प्रदूषित कर दिया है कि लोग सच्चे संत पर भी संदेह करते हैं। इस कारण पूर्ण संत को पहचानना बहुत कठिन हो गया है कि कौन सच्चा और कौन झूठा संत है। एक विद्वान ने सच्चे संत की ऐसी पहचान बताई है, जिससे हम आसानी से पूर्ण संत और असंत में अंतर समझ सकते हैं।

इस संसार में सच्चा संत वही है जो जाति-धर्म के विवाद में पड़े बिना सबको समान समझे झगड़ों से दूर रहकर वह परमेश्वर की भक्ति में एकाग्र रहे और कभी भी सांसारिकता के झूठे झगड़ों में नहीं पड़े। महान विद्वान कबीर जी कहते हैं कि यह संसार पक्ष विपक्ष के झगड़ों में उलझकर ईश्वर का नाम भूलकर उससे दूर होता जा रहा है।

एक पूर्ण गुरु की पहचान यह है कि वह सभी वेद-शास्त्रों का ज्ञाता होता है। वह चार वेदों और 18 पुराणों के साथ 6 शास्त्रों का पूर्ण ज्ञाता होता है और पृथ्वी पर एक समय में केवल एक ही असली संत होता है। जो अपने अनुयायिओं को सच्चा ज्ञान देकर समाधान करवाता है। जिससे साधक को मोक्ष प्राप्ति का लाभ मिलता है और यही साधक और पूर्ण संत का अंतिम लक्ष्य भी होता है। कबीर जी ने अपनी वाणी के माध्यम से पूर्ण संत की पहचान बताई है:-

सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। 
चार वेद षट शास्त्रा, वह कहै अठारा बोध।।

गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1 और 4 में भी तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि तत्वदर्शी संत से तत्वज्ञान जानने के बाद उस परमात्मा की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के बाद साधक इस संसार में नहीं लौटते अर्थात् वे इस संसार से पूर्णतः मुक्त हो जाते हैं। यह सारा संसार भी उस परमपिता परमात्मा से बना है।

दोस्तों आज की पोस्ट में आपने वर्तमान में भारत के प्रसिद्ध संत कौन हैं. तथा पूर्ण संत के लक्षण कैसे होते हैं के बारे में जाना। हमें उम्मीद है आपको यह आर्टिकल जरुर पसंद आया होगा। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें।

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