Who Is Kabir Parmatma: कबीर परमात्मा कौन है तथा कहां रहता है

दोस्तों क्या आप जानते हैं कि कबीर परमात्मा कौन है और कहा रहता है। ऐसे में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं कबीर परमात्मा कौन है तथा कहां रहता है।

कबीर परमात्मा कौन है

आपको बता दें कि भारत के इतिहास को तीन कालखंडों में विभाजित किया गया है, अर्थात् प्रारंभिक काल, मध्य काल और आधुनिक काल। मध्यकाल के भक्ति युग के प्रसिद्ध संत, जिन्हें संत कबीर दास के नाम से जाना जाता है और जिनके दोहे आज भी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। 

संत कबीर साहेब वास्तव में पूर्ण परमेश्वर हैं, जो लगभग 625 साल पहले अपने तत्वज्ञान का प्रचार दोहों और चौपाईयों के माध्यम से किया तथा लास्ट में सह-शरीर अपने निज धाम सतलोक गमन कर गए। आज हम आपको अपने इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे कि कबीर परमात्मा कौन है? क्या उनका का इतिहास है।

अक्सर कुछ लोग हमसे पूछते हैं कि कबीर परमात्मा कौन है तथा कहां उनका जन्म हुआ। इन्हीं सब सवालों के जवाब आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए देने वाले हैं तो कृपया लास्ट तक इस आर्टिकल को ध्यान से अवश्य पढ़ें।

आदरणीय धर्मदास जी कबीर साहेब के प्रिय शिष्य थे। उन्होंने कबीर साहेब के अनमोल वचनों को कबीर सागर, कबीर सखी आदि में संकलित किया है। इसके अलावा, कबीर साहेब द्वारा की गई सभी लीलाओं का स्पष्ट उल्लेख हमारे चार वेदों में वर्णित है। तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि कबीर जी का जन्म कैसे और कहां हुआ।

कबीर परमात्मा कौन है

हमारे शास्त्रों में इस बात का प्रमाण है कि परमात्मा जो सारी सृष्टि के स्वामी हैं और जिन्होंने हम सभी को बनाया है, वे कबीर जी हैं। क्या ऐसा हो सकता है, तो हम आपको बता दें कि यह बिल्कुल हो सकता है कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं।

हमारे शास्त्रों में इस बात का प्रमाण है कि कबीर साहेब ही एकमात्र पूर्ण परमात्मा हैं जो सभी धर्म ग्रंथों के अनुसार सिद्ध भी हो चुका है जैसे बाइबल के अनुसार पूर्ण परमात्मा जिन्होंने 6 दिन में इस सृष्टि की रचना की और सातवें दिन विश्राम किया और कुरान सरीफ सूरत फुरकान के अनुसार 25 श्लोक 52 से 59 तक अल्लाह का उल्लेख किया गया है जिसे केवल बाखबर (संत) ही बता सकता है और जिसका उल्लेख पवित्र चार वेदों में किया गया है वह कबीर परमेश्वर है।

दोस्तों आज हम आपको बिल्कुल स्पष्ट बता देना चाहते हैं क्योंकि बहुत से लोग इंटरनेट पर अक्सर सर्च करते हैं कि कबीर परमात्मा कौन है तथा उनका जन्म कहां हुआ ऐसे पाठकों को हम बताना चाहेंगे कि कबीर परमात्मा का जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं हुआ है। वह एक नवजात शिशु के रुप में लहरतारा तालाब के किनारे एक कमल के फूल पर सह-शरीर प्रकट हुए थे।

कबीर साहेब सन् 1398 (संवत 1455) में ब्रह्ममुहूर्त के समय ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को नवजात शिशु के रुप में कमल के फूल पर प्रकट हुए। कबीर जी के संबंध में भ्रांतियां हैं कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। लेकिन यह असत्य है। वेदों में वर्णित विधि के अनुसार परमपिता परमात्मा कबीर साहेब सतलोक से हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके कमल के फूल पर अवतरित हुए। इस घटना के प्रत्यक्ष साक्षी पंडित रामानंद शिष्य ऋषि अष्टानंद जी थे।

परमेश्वर कबीर जी अपनी मधुर वाणियों में लोगों को समझते हुए कहते हैं कि मैं अविगत से चलकर आया हूं इस बात को ऐ दुनिया वाले नहीं जानते हैं मैं स्वयं अविनाशी परमात्मा हूं।

अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।
ना मेरा कोई जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।

कबीर- माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहे का पुत्र आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।

हाड चाम लोहू न मेरे, जाने कोई सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।

कबीर परमात्मा का पालन पोषण किसने किया


नीरू और नीमा एक निःसंतान ब्राह्मण दंपत्ति थे, जिन्हें परमेश्वर कबीर साहेब ने अपने माता-पिता के रूप में चुना था। दरअसल नीरु और नीमा का वास्तविक नाम गौरीशंकर और सरस्वती था। वे सच्चे शंकर भक्त थे। अन्य पाखंडी ब्राह्मण उससे ईर्ष्या करते थे। इसका पूर्ण लाभ मुस्लिम काजियों ने उठाया। 

उनका जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कर गौरीशंकर का नाम बदलकर नूर अली और सरस्वती का नाम बदलकर नियामत रख दिया, जिसे अपभ्रंश भाषा में नीरू और नीमा कहा जाने लगा। जीविका चलाने के लिए नीरु और नीमा ने बुनकर का काम करना शुरू किया।

मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद पाखंडी पुजारियों ने नीरू और नीमा को गंगा में स्नान करने की मनाही कर दी थी, जिसके बाद वे हर सुबह लहरतारा तालाब में स्नान करने जाने लगे। एक दिन ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर जब नीरू और नीमा स्नान के लिए लहरतारा तालाब पहुंचे तो उन्होंने कमल के फूल पर नवजात शिशु रूप में कबीर साहेब को देखा और निसंतान होने के कारण वह बच्चे को अपने साथ घर ले आए और कबीर जी का पालन पोषण करने लगे।

जब नीमा के बेटे ने 20-25 दिन तक कुछ भी नहीं खाया लेकिन इतना हष्ट-पुष्ट था मानो बच्चा रोज एक किलो दूध पीता हो। बच्चे के दूध न पीने से नीमा और नीरू बहुत परेशान थे। 

कबीर परमेश्वर ने नीरू-नीमा की इस चिंता को दूर करने के लिए शिव को प्रेरित किया, शिवाजी एक ऋषि के रूप में नीमा के घर आए। तब कबीर जी के कहने पर शिव ने नीरू को एक कुंवारी गाय लाने का आदेश दिया। जैसे ही उसने कुँवारी गाय पर थप्पकी मारी तो देखा कि नीचे रखा दूध का घड़ा भर चुका है और भगवान ने वह दूध पीना शुरू कर दिया। पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब की इस लीला का वर्णन वेदों में भी है।

ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में इस बात का प्रमाण है कि जब अमर पुरुष शिशु के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होता है, तो उसका पालन-पोषण कुंवारी गायों द्वारा किया जाता है। 

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोममिन्द्राय पातवे।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 में प्रमाण है कि परमपिता परमात्मा बालक रूप में धरती पर प्रकट होकर कबीर वाणी के माध्यम से अपने वास्तविक ज्ञान को पुन्यात्माओं तक पहुँचाते हैं तथा वह कवियों की तरह आचरण करते हुए दोहों और चौपाईयों के माध्यम से लोगों को सतभक्ति प्रदान करते हैं।

शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् संत् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।

ऊपर दिए गए तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि कबीर दास जी बुनकर ही बल्कि ईश्वर हैं, जिसकी महिमाओं का वेदों में प्रमाण मिलता है तथा वह कबीर परमेश्वर के ऊपर सटीक उतरती हैं। परमेश्वर कबीर जी के सिवाय किसी भी भगवान की परवरिश कंवारी के दूध से नहीं हुई है और न ही किसी के बारे में कोई प्रमाण मिलता है।

कबीर परमात्मा की मगहर लीला


कबीर जी की मृत्यु के बारे लोगों में आज भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है बहुत से लोग इंटरनेट और किताबों में आज सर्च करते हैं कि कबीर दास जी की मृत्यु कहाँ हुई? दोस्तों आज हम आपको स्पष्ट बताना चाहेंगे कि कबीर दास जी की मृत्यु नहीं हुई थी बल्कि वह सह-शरीर मगहर से सतलोक प्रस्थान कर गए थे। 

कबीर साहेब जी ने लगभग 120 वर्षों तक इस धरा पर एक बुनकर की भूमिका निभाई और दोहों के माध्यम से तत्वज्ञान का प्रचार किया। उस समय लोगों में एक प्रचलित धारणा थी कि काशी में मरने वाला सीधा स्वर्ग जाता है और मगहर में मरने वाला नरक लोक में जाता है। तब परमेश्वर कबीर जी ने काशी के सभी पाखंडी पंडितों को ललकारा और मगहर अपने साथ चलने को कहा और साथ में यह भी कहा कि पंडितों तुम मगहर आकर अपने जंतर-मंतर भी लगा कर देखना कि मैं कहाँ जाऊँ?

कबीर साहेब के शिष्यों में काशी के राजा बीर सिंह बघेल और मगहर रियासत के राजा बिजली खान पठान सहित दोनों धर्मों के लोग थे। दोनों धर्मों के लोगों ने कबीर साहेब के शरीर का अंतिम संस्कार अपने-अपने धर्म के अनुसार करने का निश्चय किया था और शव न मिलने पर दोनों धर्मों ने गृहयुद्ध की पूरी तैयारी कर रखी थी। कबीर परमेश्वर की लीलाओं से दोनों धर्मों के लोग भलिभाति परिचित थे।

काशी तज सतगुरु मगहर गये, दोनों दीन के पीर।
कोई गाड़े कोई अग्नि जरावे, ढुंढा ना पाया शरीर।।

परमेश्वर कबीर जी ने मगहर पहुंचकर बहते जल में स्नान करने की इच्छा प्रकट की। बिजली खान पठान ने शिव के श्राप से सूख गई अमी नदी के बारे में परमेश्वर कबीर को बताया। तब परमात्मा कबीर जी ने अपने हाथ से इशारा किया और आमी नदी जल से ओवरफ्लो हो गई। फिर परमात्मा ने स्नान कर सतलोक गमन की तैयारी की।

कबीर जी के लिए एक चादर बिछाई गई, उस पर सुगंधित फूल बिछाए गए और उन पर कबीर साहेब जी लेट गये तथा ऊपर से एक दूसरी चादर ढँक दी। वर्ष 1518 (संवत 1575) में माघ शुक्ल पक्ष, तिथि एकादशी को परमात्मा कबीर साहेब जी सह-शरीर इस संसार से अपने निज धाम सतलोक चले गए।

भगवान कबीर साहेब जी ने वहां उपस्थित सभी लोगों से कहा कि वह स्वर्ग से भी ऊंचे स्थान सतलोक जा रहे हैं और हिंदुओं और मुसलमानों को आदेश दिया कि कोई आपस में न लड़े और जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधा-आधा बांट लें। भगवान ने हिंदुओं और मुसलमानों को प्यार से जीने का आशीर्वाद दिया, जो अभी भी मगहर में फल-फूल रहा है।

वहां मौजूद दोनों धर्मों के लोगों ने जब चादर हटाई तो शरीर की जगह सुगंधित फूल ही मिले। दोनों धर्मों ने उन सुगंधित फूलों को आपस में बांट लिया और उन पर यादगार के रूप में दो स्मारक बनाई गई। मगहर में आज भी यह स्मारक मौजूद है। 

काशी में कबीर चौरा नामक स्मारक पर कुछ फूल रखे हुए हैं। कबीर परमेश्वर की सभी लीलाओं का वेदों और शास्त्रों में प्रमाण देखने के साथ-साथ अपनी शंकाओं का समाधान पाने के लिए आप Google Play Store से संत रामपाल जी महाराज ऐप डाउनलोड कर सकते हैं।

संत रामपाल जी महाराज आज के समय में कबीर जी के पगचिन्हों पर चलने वाले महान संत हैं। कबीर जी द्वारा बताई गई सच्ची भक्ति को वे हमारे धार्मिक ग्रंथों से प्रमाणित करते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने कलियुग में कबीर जी को भगवान साबित किया है। 

हमारे सभी धार्मिक ग्रंथ भी इस बात की गवाही देते हैं कि परमपिता परमात्मा कबीर साहेब जी ही हैं जिनकी भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। इसलिए अपना समय बर्बाद न करें और संत रामपाल जी महाराज से दीक्षा लें और अपना कल्याण कराएं।

दोस्तों आज के इस आर्टिकल आपने जाना कबीर परमेश्वर कौन है तथा उनका जन्म कहां हुआ। दोस्तों आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि उनको भी कबीर जी की मगहर लीला के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।

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