महाशिवरात्रि पर्व पर जानिए भगवान शिव से जुड़ी कुछ रहस्यमई बातें, जो आजतक आपने कभी नहीं सुनी होंगी: Mahashivratri 2022

महाशिवरात्रि व्रत कब है 2022: भारतवर्ष में महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को बड़े हर्ष उल्लास से मनाया जाता है। इस बार Maha Shivratri पर्व 01 मार्च दिन मंगलवार को मनाया जा रहा है। कुछ भक्त इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की आराधना और व्रत करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में व्रत करना पूर्णत: वर्जित है।

Mahashivratri 2022

मित्रों, इस पृथ्वी पर सभी प्राणी अपने कर्मों के अनुसार जन्म-मरण भोगते रहते हैं। कर्म के आधार पर जीव को 84 लाख योनियों और आयु और भोग का प्राप्त होता है। जन्म के समय ही मनुष्य शुभ कर्म लेकर पैदा होता है, लेकिन पृथ्वी पर आकर मनुष्य शास्त्रों के विरुद्ध भक्ति करके अपने शुभ कर्मों को नष्ट कर देता है।

इसीलिए श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में कहा गया है कि जो मनुष्य शास्त्रों का शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा के अनुसार मनमाना आचरण करता है, उसे न तो कोई सुख मिलता है और न ही कोई सिद्धि प्राप्त होती है और न ही परमगति मिलती है। 

इसलिए किसी भी प्रकार की साधना या व्रत करने से पहले श्रीमद्भागवत गीता अवश्य पढ़ें या फिर पूर्ण संत की पहचान करने के उपरांत उसके द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर चलें। तो आइए अब जानते हैं भगवान शिव कौन है और क्या है?

भगवान शिव कौन है और क्या है: Mahashivratri 2022

भगवान शंकर को देव के देव महादेव भोलेनाथ और नीलकंठ आदि नामों से जाना जाता है। लेकिन फिर भी भगवान शिव से जुड़ी कुछ रहस्यमई बातों को श्रद्धालु अभी नहीं जान पाए हैं। जैसे भगवान शिव के माता-पिता कौन थे? 

ब्रह्मा विष्णु और महेश को किसने जन्म दिया है? यह रहस्यमई सवाल कई श्रद्धालुओं के मन में उठते हैं। तो ऐसे में आज हम आपको त्रिदेव की उत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं।

कुछ विद्वान मानते हैं शिव को इंसान की चेतना के अन्तर्यामी हैं यानी इंसान के मन की बात पढ़़ने वाले हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं क्योंकि एक बार भगवान शिव अपने भक्त भस्मासुर के मन की बात नहीं जान पाए थे। जिस कारण उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इनकी अर्धांग्नि को माता पार्वती के नाम से जाना जाता है। 

भगवान शिव के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं। शिव जी आपने अधिकत्तइर ध्याान की मुद्रा में ही देखा होगा। लेकिन उनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है।  शिव जी के गले में हमेशा नाग देवता विराजमान रहते हैं और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल दिखाई देता हैं। तो आइए अब नीचे जानते हैं भगवान शिव के माता-पिता कौन थे।

ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पत्ति कैसे हुई

श्रीमद् देवी महापुराण में भगवान शिव के माता-पिता की एक कथा है। देवी महापुराण के अनुसार एक बार जब नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्मांड की रचना किसने की? आपने या भगवान विष्णु या फिर भगवान शिव? आप तीनों के माता-पिता कौन हैं? 

तब ब्रह्मा जी ने नारदजी को त्रिदेव की उत्पत्ति कैसे हुई की कथा सुनाते हुए कहा कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति देवी दुर्गा और सदाशिव कालब्रह्म के संयोग से हुई है। अर्थात प्रकृति स्वरूप दुर्गा शिव की माता हैं और सदाशिव कालब्रह्म पिता हैं।

श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच इस बात को लेकर झगड़ा हुआ था कि वे एक दूसरे के पिता हैं। ब्रह्मा जी ने कहा कि उन्होंने संसार की रचना की है और विष्णु जी ने कहा कि आप मेरी नाभि से पैदा हुए हैं इसलिए मेरे पुत्र हुए। 

तभी उनके बीच कालब्रह्म सदाशिव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि तुम दोनों मेरे पुत्र हो। मैंने ब्रह्मा की संसार की उत्पत्ति और दूसरे को संसार पाल का काम सौंपा है। दोस्तों अभी आपने ब्रह्मा, विष्णु महेश का इतिहास जाना तो आइए अब जानते हैं कि ब्रह्मा विष्णु महेश किसकी पूजा करते हैं?

ब्रह्मा विष्णु महेश किसकी पूजा करते हैं

दोस्तों क्या आप जानते हैं महादेव किसका ध्यान करते हैं. दोस्तों ऐसे में हम आपको बताना चाहेंगे कि ब्रह्मा विष्णु और महेश माता दुर्गा की आराधना करते हैं। श्रीमद देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंद अध्याय 5 लिखा है कि भगवान विष्णु दुर्गा की स्तुति करते हुए कहते हैं कि तुम शुद्ध स्वरुपा हो यह सरा संसार तुम से उद्घाटित हो रहा है।

मैं विष्णु, ब्रह्मा और शंकर तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं हमारा तो आविभार्व यानी जन्म तथा तिरोभाव यानी मृत्यु होती है, हम नित्य अविनाशी नहीं हैं। तुम ही नित्य हो जगत जननी और प्रकृति देवी हो। फिर भगवान शंकर दुर्गा की आराधना करते हुए कहते हैं कि यदि भगवान विष्णु और ब्रह्मा तुम्हीं से उत्पन्न हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो।

इस सम्पूर्ण संसार की सृष्टि और संहार करने में तुम्हारे गुण सदा विद्यमान हैं। इन्हीं तीनों गुणों से युक्त हम ब्रह्मा विष्णु और महेश तुम्हारे बताए नियमानुसार कार्य में हमेशा तत्पर रहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि ब्रह्मा विष्णु और भगवान शिव माता दुर्गा की आराधना करते हैं तथा इन त्रिदेवों की जन्म-मृत्यु होती भी होती है। आइए अब जानते हैं शिव की भक्ति करने से क्या मिलता है?

शिव की पूजा करने से कौन सी पदवी प्राप्त होती

भगवान शिव की भक्ति करने वाले व्यक्ति बहुत क्रोधी स्वभाव के होते हैं। क्योंकि भगवान शिव तमोगुण युक्त हैं इसलिए शिव की आराधना करने वाले लोग में तमोगुण का प्रभाव अधिक होता है। तो आइए नीचे जातने हैं भगवान शिव की आराधना करने वाले व्यक्ति कैसे होते हैं।

प्राचीन युग में भगवान शिव की भक्ति रावण ने की थी। रावण भगवान शिव पर पूर्ण विश्वास करता था। शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने दस बार अपना सिर काटकर उन्हें चढ़ा दिया। इसके बाद पूरे देवलोक से लेकर पृथ्वी लोक में रावण के अत्याचार से सभी मर्माहत होने लगे। रावण ने सबसे पहले कुबेर को बंदी बनाकर उनके पूरे साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। 

शिव भक्ति के कारण ही रावण इतना अहंकारी हो गया कि एक दिन छल से माता सीता का हरण कर लंका ले आया है और अंत में रावण राक्षस कहलाता। इससे सिद्ध होता है कि शास्त्र विरुद्ध शिव की भक्ति करने से लोगों को क्रोधी और राक्षस स्वभाव की पदवी प्राप्त होती है।

प्राचीन काल में भस्मासुर ने भी भगवान शिव की आराधना की थी। भस्मासुर की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान में भस्म काड़ा दे दिया। इसके बाद भस्मासुर ने भगवान शिव को ही अपना पहला शिकार बना लिया। भस्मासुर किस उद्देश्य से शिव की भक्ति कर रहा था भगवान शिव नहीं जान पाए और अंत में उन्हें भस्मासुर से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। 

इसलिए श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में कहा है कि त्रिगुणमयी माया के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है ऐसे असुर स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्य में नीच दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मेरी भक्ति नहीं करते हैं। आइए अब जानते हैं गीता अनुसार किसकी भक्ति करनी चाहिए-

गीता अनुसार किस भगवान की भक्ति करनी चाहिए

गीता ज्ञान दाता ने स्वयं गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे अर्जुन! तू सर्वभाव से उस परमपिता परमात्मा की शरण में चला जा, उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति और शाश्वत स्थान अर्थात् सनातन परमधाम को प्राप्त होगा।

गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि तत्वदर्शी संत (पूर्ण संत) मिलने के उपरांत तत्वज्ञान के शस्त्र से अज्ञान के अन्धकार को काटकर उस परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए, जहां जाने के बाद साधक फिर कभी इस संसार में लौटकर नहीं आते अर्थात् उनका पूर्ण मौक्ष हो जाता है और वह लोग जन्म मरण के दीर्घ रोग से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते हैं।

दोस्तों आज की पोस्ट में आपने भगवान शिव से जुड़ी रहस्यमई महत्वपूर्ण बातें जानी। हमें उम्मीद है आपको यह आर्टिकल जरुर पसंद आया होगा। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें और साथ ही कमेंट में हमें अपनी राय भी दें।


Post a Comment

Previous Post Next Post